बवाल बन गया पत्रकारों का आधार कार्ड कैम्प

Note: Aadhaar is a 12 digit biometric identification number, not a card. Aadhaar is an identifier, not a identity proof.  Media has been failing consistently in reporting it factually based on what concerned government  agencies themselves claim

बवाल बन गया पत्रकारों का आधार  कार्ड कैम्प 
समाजसेवा के नाम पर पत्रकारों के संगठन दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने अपने हाथ में पत्रकारों के लिए आधार कार्ड बनवाने का जिम्मा क्या लिया, बवाल ही खड़ा हो गया। आधार कार्ड को विदेशी एजंसियों की साजिश बताने वाली संस्था सिटिजन फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज ने दिल्ली पत्रकार संघ की इस पहल का विरोध करते हुए कहा है कि जिन्हें आधार कार्ड का विरोध करना चाहिए वे पत्रकार अपना ही आधार कार्ड बनवाने जा रहे हैं। यह हास्यास्पद है।
दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन की ओर से हाल में ही यह निर्णय लिया गया था कि वे पत्रकारों की सुख सुविधा का ध्यान रखते हुए ऐसी पहल करेंगे जिससे उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ी राहत पहुंच सके। दिल्ली जैसे शहर में पत्रकारों के लिए लाइसेन्स बनवाना, वोटर आईडी कार्ड बनवाने जैसे काम कई बार समय के अभाव में सालों लटके रहते हैं। इसलिए हाल में दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने पत्रकारों के लिए दिल्ली सरकार के साथ मिलकर वाहन लाइसेन्स बनवाने का कैम्प लगाया था तो अब वह रविवार और सोमवार (4-5 अगस्त) को दिल्ली में पत्रकारों के लिए विशेष आधार कार्ड बनवाने और पहचानपत्र बनवाने का कैम्प लगा रहा है। लेकिन जैसे ही इसकी भनक आधार कार्ड का विरोध करनेवाले समूह को लगी उन्होंने तत्काल इसका विरोध कर दिया और प्रेस काउंसिल आफ इंडिया को चिट्ठी भी लिख दी कि पत्रकारों का इस तरह कैम्प लगाकर आधार कार्ड बनवाना पत्रकारिता के साथ धोखाधड़ी है।
प्रेस काउंसिल के चेयरमैन मारकण्डेय काटजू को लिखी चिट्ठी में सिटिजन फोरम फॉर सिविल लिबर्टी ने लिखा है कि दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन और इंद्रप्रस्थ प्रेस क्लब का यह प्रयास पूरी तरह से अनैतिक और अवैधानिक है। फोरम पहले भी आधार कार्ड को आधार नंबर बताकर इसका विरोध करता रहा है। फोरम का कहना है कि यह देश के नागरिकों की निजता पर सरकारी डाका है। जिस तरह से आधार कार्ड बनवाने के लिए हाथ और आंखों के निशान लिये जाते हैं वैसा आमतौर पर कैदियों का लिया जाता है। इसे बायोमिट्रिक्स टेस्ट कहा जाता है जो कि इंसानी प्राइवेसी के लिहाज से बहुत खतरनाक पहल है। ऊपर से इस पूरी परियोजना के पीछे जिस तरह से कारपोरेट लॉबी काम कर रही है वह भी इस आधार परियोजना पर कई तरह के सवाल खड़ा करती है। फोरम का कहना है कि, "पत्रकारों को इसके बारे में जानकारी देने की बजाय ये पत्रकारीय संस्थाएं पत्रकारों को अंधेरें रखकर उनका ही आधार कार्ड बनवाने में लग गई हैं जो एक तरह से लोकतंत्र के साथ भी धोखाधड़ी है।"
हालांकि दिल्ली जर्नलिस्ट एसोसिएशन के पदाधिकारी इस बात से इंकार करते हैं कि वे जानबूझकर पत्रकारों की निजता भंग कर रहे हैं। एक पदाधिकारी का कहना है कि आधार कार्ड इतना अनिवार्य कर दिया गया है कि अब इसके बिना काम नहीं चल सकता। फिर, इसके विरोध का हम कोई विरोध नहीं करते और जो शिविर लगाया जा रहा है वह सिर्फ सुविधा के लिए है। आधार कार्ड बनवाने के लिए किसी से कोई जबर्दस्ती नहीं की जा रही है। डीजेए से जुड़े अनिल पांडे ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है- "हमारे सदस्य बार बार यह मांग रहे थे कि व्यस्त जीवन में वे अपना व परिवार के लोगों का ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड और वोटर कार्ड आदि नहीं बनवा पाते हैं, जिसकी वजह से रोजमर्रा के कार्यों में काफी अड़चने आती हैं. लिहाजा, इसके मद्देनजर मीडियाकर्मियों के लिए शिविर लगवाया जाए. इसी मांग पर दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन और इंद्रप्रस्थ प्रेस कलब ने यह पहल की है."

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