उत्तर प्रदेश ने चिदंबरम, अहलुवालिया व निलेकनी के 'आधार' को अंगूठा दिखा दिया
बायोमेट्रिक और खुफिया तकनीकी से मानवाधिकार व संप्रभुता को खतरा
मतदाताओ ने विदेशी पूंजी निवेश और मुक्त व्यापार समझौतों को भी खारिज किया
दिल्ली, बंगलौर, चेन्नई, पटना -चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने चिदंबरम, अहलुवालिया व निलेकनी की सलाह पर अंगूठे और आँखों की पुतलियो की तस्वीर की निशानदेही के 'आधार' (यू.आई.डी) पर ही उन्हें नागरिक मानने और सरकारी योजनाओ के फायदे देने की शर्त रखी थी. इसके जरिये देशवासियों के पूरे शारीरिक हस्ताक्षर को रिकॉर्ड में रखा जा रहा है. उत्तर प्रदेश के मतदाताओ ने उनकी इस गुस्ताखी की सजा दे दी है. राहुल गाँधी ने 'आधार' को पार्टी का अजेंडा बनाया था. अब जबकि उन्होंने पार्टी की हार की जिम्मेवारी ले ली है उन्हें चाहिए की वो मतदाताओ द्वारा खारिज 'आधार' परियोजना को रोकने के लिए कदम उठाये. कांग्रेस पार्टी की इस योजना को अमेठी और रायबरेली में भी अंगूठा दिखाया गया है.
चुनाव से पहले इस पार्टी ने काफी प्रयास किया की चिदंबरम, अहलुवालिया व निलेकनी एक टीम की तरह काम करे और नागरिको को जनगणना कानून के उलंघन की सच्चाई छुपा कर गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर की ख़ुफ़िया निगाह में लाया जाये. उत्तर प्रदेश के मतदाताओ ने यह हिमाकत करनेवालों को सबक दे दिया है. वित्त की संसदीय समिति ने इसे खारिज कर दिया था अब उत्तर प्रदेश ने भी इसे खारिज कर दिया है.
ब्रिटेन, चीन, आस्ट्रलिया, फिलिपिन्स और अमेरिका की बदनाम हो चुकी परियोजना को भारत में भी तिलांजलि न दे देनी पड़े, इस बात की आशंका के चलते अब सरकार के द्वारा कहा जा रहा था कि यू.आई.डी. अंक वैकल्पिक है अनिवार्य नहीं। अब यह खुलासा हो चुका है कि कुछ कंपनियों के दबाब में सरकार नागरिको को गुमराह कर रही थी. असल में' आधार' (यू.आई.डी) से जुड़ी है राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) की परियोजना जो अनिवार्य है.
इसके जरिए गृह मंत्रालय केरजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया आंकड़ों का भंडार तैयार करेंगे। यह समझ लेना होगा कि जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर अलग-अलग चीजें हैं। जनगणना जनसंख्या, साक्षरता, शिखा, आवास और घरेलू सुविधाओं, आर्थिक गतिविधि, शहरीकरण, प्रजनन दर, मृत्युदर, भाषा, धर्म और प्रवासन आदि के संबंध में बुनियादी आंकड़ों का सबसे बड़ा स्रोत है जिसके आधार पर केंद्र व राज्य सरकारें योजनाएं बनती हैं और नीतियों का क्रियान्वयन करती हैं, जबकि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पूरे देश के नागरिकों के पहचान संबंधी आंकड़ों का समग्र भंडार तैयार करने का काम करेगा। इसके तहत व्यक्ति का नाम, उसके माता, पिता, पति/पत्नी का नाम, लिंग, जन्मस्थान और तारीख, वर्तमान वैवाहिक स्थिति, शिक्षा, राष्टीयता, पेशा, वर्तमान और स्थायी निवास का पता जैसी तमाम सूचनाओं का संग्रह किया जाएगा। इस आंकड़ा-भंडार में 15 साल की उम्र से उपर सभी व्यक्तियों की तस्वीरें और उनकी उंगलियों के निशान भी रखे जाएंगे। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के आंकड़ो-भंडार को अंतिम रूप देने के बाद, अगला कार्यभार होगा हर नागरिक को विशिष्ट पहचान अंक प्रदान करना। यह अंक इसके बाद राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में टांकें जांएगे।
उत्तर प्रदेश के मतदाताओ ने इसे खारिज कर देश को रास्ता दिखा दिया है.
यह योजना गाड़ियो और जानवरों पर भी रेडियो ध्वनि द्वारा लागु होने जा रही है, जो परत दर परत सामने आ रहा है. यह परियोजना संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और फ्रांस की कंपनियों और विश्व बैंक के जरिये लागु किया जा रहा है. दक्षिण एशिया में यह पाकिस्तान में लागु हो चुका है और नेपाल और बंगलादेश में लागु किया जा रहा है .
इस बात पर कम ध्यान दिया गया है कि कैसे विराट स्तर पर सूचनाओं को संगठित करने की धारणा चुपचाप सामाजिक नियंत्रण, युद्ध के उपकरण और जातीय समूहों को निशाना बनाने और प्रताड़ित करने के हथियार के रूप में विकसित हुई है। राजनीतिक कारणों से समाज के कुछ तबकों के जनसंहार का अगर एक समग्र अध्ययन कराया जाए तो उससे साफ हो जाएगा कि किस तरह निजी जानकारियां और आंकड़े जिन्हें सुरक्षित रखा जाना चाहिए था, वे हमारे देश में दंगाइयों और जनसंहार रचाने वालों को आसानी से उपलब्ध थे। भारत सरकार भविष्य की कोई गारंटी नहीं दे सकती। अगर नाजियों जैसा कोई दल सत्तारूढ़ होता है तो क्या गारंटी है कि आधार' (यू.आई.डी.) और राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर के आंकड़े उसे प्राप्त नहीं होंगे और वह बदले की भावना से उनका इस्तेमाल नागरिकों के किसी खास तबके के खिलाफ और कोई देश इसे हासिल कर दुसरे देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं करेगा? बायोमेट्रिक और खुफिया तकनीकी से मानवाधिकार व संप्रभुता का खतरा पैदा हो गया है.
चुनाव के दौरान पार्टी ने मतदाताओ को विदेशी पूंजी निवेश और मुक्त व्यापार समझौतों की वकालत की थी जिसे खारिज किया गया गया.
For Details: Gopal Krishna, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL), New Delhi, Mb: 07739308480, 09818089660, E-mail-krishna1715@gmail.com
Vinay Baindur, Bangalore, Email:yanivbin@gmail.com
Anivar Aravind, Chennai, E-mail-anivar.aravind@gmail.com, Mb: 09448063780
मतदाताओ ने विदेशी पूंजी निवेश और मुक्त व्यापार समझौतों को भी खारिज किया
दिल्ली, बंगलौर, चेन्नई, पटना -चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने चिदंबरम, अहलुवालिया व निलेकनी की सलाह पर अंगूठे और आँखों की पुतलियो की तस्वीर की निशानदेही के 'आधार' (यू.आई.डी) पर ही उन्हें नागरिक मानने और सरकारी योजनाओ के फायदे देने की शर्त रखी थी. इसके जरिये देशवासियों के पूरे शारीरिक हस्ताक्षर को रिकॉर्ड में रखा जा रहा है. उत्तर प्रदेश के मतदाताओ ने उनकी इस गुस्ताखी की सजा दे दी है. राहुल गाँधी ने 'आधार' को पार्टी का अजेंडा बनाया था. अब जबकि उन्होंने पार्टी की हार की जिम्मेवारी ले ली है उन्हें चाहिए की वो मतदाताओ द्वारा खारिज 'आधार' परियोजना को रोकने के लिए कदम उठाये. कांग्रेस पार्टी की इस योजना को अमेठी और रायबरेली में भी अंगूठा दिखाया गया है.
चुनाव से पहले इस पार्टी ने काफी प्रयास किया की चिदंबरम, अहलुवालिया व निलेकनी एक टीम की तरह काम करे और नागरिको को जनगणना कानून के उलंघन की सच्चाई छुपा कर गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर की ख़ुफ़िया निगाह में लाया जाये. उत्तर प्रदेश के मतदाताओ ने यह हिमाकत करनेवालों को सबक दे दिया है. वित्त की संसदीय समिति ने इसे खारिज कर दिया था अब उत्तर प्रदेश ने भी इसे खारिज कर दिया है.
ब्रिटेन, चीन, आस्ट्रलिया, फिलिपिन्स और अमेरिका की बदनाम हो चुकी परियोजना को भारत में भी तिलांजलि न दे देनी पड़े, इस बात की आशंका के चलते अब सरकार के द्वारा कहा जा रहा था कि यू.आई.डी. अंक वैकल्पिक है अनिवार्य नहीं। अब यह खुलासा हो चुका है कि कुछ कंपनियों के दबाब में सरकार नागरिको को गुमराह कर रही थी. असल में' आधार' (यू.आई.डी) से जुड़ी है राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) की परियोजना जो अनिवार्य है.
इसके जरिए गृह मंत्रालय केरजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया आंकड़ों का भंडार तैयार करेंगे। यह समझ लेना होगा कि जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर अलग-अलग चीजें हैं। जनगणना जनसंख्या, साक्षरता, शिखा, आवास और घरेलू सुविधाओं, आर्थिक गतिविधि, शहरीकरण, प्रजनन दर, मृत्युदर, भाषा, धर्म और प्रवासन आदि के संबंध में बुनियादी आंकड़ों का सबसे बड़ा स्रोत है जिसके आधार पर केंद्र व राज्य सरकारें योजनाएं बनती हैं और नीतियों का क्रियान्वयन करती हैं, जबकि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पूरे देश के नागरिकों के पहचान संबंधी आंकड़ों का समग्र भंडार तैयार करने का काम करेगा। इसके तहत व्यक्ति का नाम, उसके माता, पिता, पति/पत्नी का नाम, लिंग, जन्मस्थान और तारीख, वर्तमान वैवाहिक स्थिति, शिक्षा, राष्टीयता, पेशा, वर्तमान और स्थायी निवास का पता जैसी तमाम सूचनाओं का संग्रह किया जाएगा। इस आंकड़ा-भंडार में 15 साल की उम्र से उपर सभी व्यक्तियों की तस्वीरें और उनकी उंगलियों के निशान भी रखे जाएंगे। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के आंकड़ो-भंडार को अंतिम रूप देने के बाद, अगला कार्यभार होगा हर नागरिक को विशिष्ट पहचान अंक प्रदान करना। यह अंक इसके बाद राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में टांकें जांएगे।
उत्तर प्रदेश के मतदाताओ ने इसे खारिज कर देश को रास्ता दिखा दिया है.
यह योजना गाड़ियो और जानवरों पर भी रेडियो ध्वनि द्वारा लागु होने जा रही है, जो परत दर परत सामने आ रहा है. यह परियोजना संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और फ्रांस की कंपनियों और विश्व बैंक के जरिये लागु किया जा रहा है. दक्षिण एशिया में यह पाकिस्तान में लागु हो चुका है और नेपाल और बंगलादेश में लागु किया जा रहा है .
इस बात पर कम ध्यान दिया गया है कि कैसे विराट स्तर पर सूचनाओं को संगठित करने की धारणा चुपचाप सामाजिक नियंत्रण, युद्ध के उपकरण और जातीय समूहों को निशाना बनाने और प्रताड़ित करने के हथियार के रूप में विकसित हुई है। राजनीतिक कारणों से समाज के कुछ तबकों के जनसंहार का अगर एक समग्र अध्ययन कराया जाए तो उससे साफ हो जाएगा कि किस तरह निजी जानकारियां और आंकड़े जिन्हें सुरक्षित रखा जाना चाहिए था, वे हमारे देश में दंगाइयों और जनसंहार रचाने वालों को आसानी से उपलब्ध थे। भारत सरकार भविष्य की कोई गारंटी नहीं दे सकती। अगर नाजियों जैसा कोई दल सत्तारूढ़ होता है तो क्या गारंटी है कि आधार' (यू.आई.डी.) और राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर के आंकड़े उसे प्राप्त नहीं होंगे और वह बदले की भावना से उनका इस्तेमाल नागरिकों के किसी खास तबके के खिलाफ और कोई देश इसे हासिल कर दुसरे देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं करेगा? बायोमेट्रिक और खुफिया तकनीकी से मानवाधिकार व संप्रभुता का खतरा पैदा हो गया है.
चुनाव के दौरान पार्टी ने मतदाताओ को विदेशी पूंजी निवेश और मुक्त व्यापार समझौतों की वकालत की थी जिसे खारिज किया गया गया.
For Details: Gopal Krishna, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL), New Delhi, Mb: 07739308480, 09818089660, E-mail-krishna1715@gmail.com
Vinay Baindur, Bangalore, Email:yanivbin@gmail.com
Anivar Aravind, Chennai, E-mail-anivar.aravind@gmail.com, Mb: 09448063780
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